#बढ़ना
ये बढता हुआ लोकड़ाउन ,
ये कम होता हुआ धीरज।

ये बढती हुई अस्पताल,
ये कम होती हुई जनसंख्या।

ये बढ़ती हुई भूख,
ये कम होती हुई सब्जियां।

ये ऊँची उड़ान परिन्दों की,
ये डरी- सहमी सी नज़र इंसानो की।

ये बढ़ती हुई जुदाई,
ये कम होती हुई गिनती सांसो के।

ये बढ़ती हुई तन्हाई,
ये कम होती हुई भीड़।

ये अनदेखा-अनजाना सा नज़ारा,
ये खुशियों का खत्म होता हुआ पिटारा,

खुद को भगवान समझता इंसान,
लगाए गुहार फैला के दामन।
Mahek Parwani

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111426927

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