#kavyotsav2 .0
"हवा"
कहां से आती हूं
कहां चली जाती हूं
एक स्थल पर ना रह पाती हूं
चंचल प्रगति से सब को लुभाती हूं
कभी शीत तरंगे लाती हूं
कभी उष्ण तरंगे लाती हूं
कभी तरु पर झूलती हूं
कभी सागर में मचलती हूं
कभी वस्त्रों से खेलती हूं
कभी मंदिरों की घंटी बजाती हूं
कभी जुल्फें उड़ाती हूं
तो कभी लाज से छिप जाती हूं
ऐसे ही बनकर बहती हूं
तभी तो कवि की कविता
या किसी गीतकार की गीत बन जाती हूं

Hindi Poem by Yakshita : 111420366

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