"अनजाना डर हैं !
अनजाना भ्रम हैं !
अनजाना मर्म हैं !
अनजाना अफसाना हैं !

दर्द बढ़ रहे हैं !
चिंता हो रही हैं !
गुमसुम सी फ़िज़ा हैं !
न महफिल की समा हैं !

चारो तरफ दुःख का साया है !
चारो तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा है !
चारो तरफ इक बेचैनी है !
चारो तरफ इक हताशा है !

अनजाना डर हैं !
अनजाना भ्रम हैं !
अनजाना मर्म हैं !
अनजाना अफसाना हैं !

क्या करू ?
क्या न करू ?
क्या होगा ?
क्या न होगा ?
के प्रश्न हैं !

हतासा है!
निराशा है !
उदासी है !

पर आस न छोड़ूंगा अभी !
हिम्मत न तोड़ूंगा अभी !
आखिरी सांस तक लड़ूँगा !
आखिरी आस तक लड़ूँगा !
आखिरी शब्द तक लड़ूँगा !

दर्द को मात दूंगा !
वक़्त को मात दूंगा !
कर्म को मात दूंगा !
चुनौतियों को मात दूंगा !
हर मुश्किल घड़ी को मात दूंगा !

ये समय को मात दूंगा !
ये भॅवर को मात दूंगा !
ये समा को मात दूंगा !
ये फिजा को मात दूंगा !
मात दूंगा !मात दूंगा !
दूँगा दूँगा मात दूँगा !

ये मुश्किल समय को धैर्य से, हिम्मत से, सावधानी से, सोशल डिस्टैन्सिंग से, मास्क पहन कर, घर में रहकर और सरकारी गाइडलाइन्स से मात दूंगा !
जय हिन्द जय भारत !!
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दिलीप उत्तम

Hindi Poem by DILIP UTTAM : 111420332

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