ગઝલ
છંદ--રજઝ16


गुल थे कभी तुम जिस चमन के, बागबां वो छोड़ दे
ना  है  बहारें  तो  गुबारों से तु रिश्ता जोड़  दे

ना कर सकेगा तु तकाजा़ , वक्त है ख़ुदग़र्ज़ ये
अब चंद बाकी जिंदगी है, तू गज़र को मोड़ दे

है पाक़ दिल की ये तपन,तू जल, पिघल के रुक्म बन
ना हिर्स कर, ये कांच की जूठी सि खुशियां फोड़ दे

एहसान क्युं मगरुर किस्मत से भला हम ले कभी
गर थम गई हैं ये लकीरें, तू हि थोड़ा दौड़ दे

चाहे ज़माना हो न तेरा, है मग़र तेरा ख़ुदा
है रुहे-रोशन बंदगी, जंजी़र काफ़िर तोड़ दे
                                                      

Hindi Shayri by Chahat : 111413916

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