वह अंतिम मुस्कान भेद रही है मेरे हृदय को
मैं व्याकुल हूँ क्योंकि देख रही हूं निर्लज्ज आँखों में संतोष
मैं व्याकुल हूँ देखकर चुप्पी आनंद की उन लाल सोच के अधरों की,
मैं व्याकुल हूँ रक्तपान में शामिल जनों को देखकर
क्योंकि उनके हृदय में चल रहा है आनंद उत्सव
मैं व्याकुल हूँ उस बूढे निर्दोष चेहरे के अंतिम संदेश को देखकर,
निकल रही है आह् उन लोगों के लिए जो निकल पड़ते हैं अपने फायदे के लिए देश बाँटने जहरीले आँसू लिए..

अब सब मौन हैं क्योंकि वे आज संतुष्ट हैं इस रक्तपान से,
लबालब है उनके हाथों में रक्त से भरा कटोरा
अब वह नृत्य कर रहे हैं मानवता की मृतदेह पर,
कौन कहता है रक्तपिपासु जीवित नहीं हैं..।

दिव्या राकेश शर्मा

#पालघर_हत्याकांड

Hindi Poem by Divya Sharma : 111407101

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