शून्य से आरम्भ हुआ जब माँ के आँचल की छाव पायी थी
संसार नगरी की झलक सुनाने मेरी माँ ने लोरी गायी थी ।

घुटने से पाँव-पाँव चलने की जुगत भी मेरी माँ ने बताई थी
पोथी पत्रर लेकर माँ ने मुझे पाठशाला लेकर भी पहुँची थी

शैतानी जब करता में था प्यारी पिट्टी भी उसने लगायी थी
रोने पर माँ ने पल्लू से निकाल गोलमिठाई भी खिलायी थी

शून्य आरंभ से बड़ा हुआ वयास्थाये सारी अब हो जाती है
माँ के वात्सल्य आँचल की छाव का स्नेह नही दे पाती है ।

#शून्य

Hindi Poem by कमलेश शर्मा कमल सीहोर म.प्र : 111402176

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