“उस जाति की स्थिति कितनी दयनीय हैं, जो परस्पर वेमनस्य के कारण कई संप्रदायो मे बँट चुकी हैं और हर संप्रदाय स्वयं को एक जाति मानने लगा हैं”

~ अज्ञात

Hindi Good Morning by Rajanmukundray : 111400053

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