मुकम्मल नहीं हो पाती बिना तुम्हारे अपनेआप में आदि हो चुकी थी , बसने लगी थी आदतें तुम्हारी मेरे अंदर, इल्म न था जब कि तुम्हें किसी बात का, कहीँ ओर बसता था जहां तुम्हारा, आदतन आज भी जी रही हूँ वही अफ़साना , अब नामुमकिन नहीं तुम्हारे साथ, बिना तुम्हारे अपनेआप में मुकम्मल होना । @B