कुदरत का खेल सारा है ।
गहरी दुविधा मैं फ़शा जंहा सारा है ।

चुनोती आई हैं अपनो को खुद से बचाने की ।
अनोखी है ये लड़ाई, घर में बैठ के लङनेकी ।

सबक सायद सीखा रही हो ।
जीने के नए तरीके दिखा रही हो ।

मुसीबत आई है, इलाज भी आएगा ।
जिनपे तुम थूक रहे हो, वही कल भगवान कहलायेगा ।

साथ दो, एक हो, थाली की आवाज हो, या दिया का प्रकाश हो ।
सब चाहते है, सब का मंगल हो ।

व्यथा नही करनी, बीमारी आएगी और जाएगी ।
कुदरत ही फिर से जीना सिखाएगी ।

बस कुदरत का खेल सारा है ।
गहरी दुविधा मैं फ़शा जंहा सारा है ।

- संदीप तेरैया "धारागढ़ी"

Hindi Poem by Ssandeep B Teraiya : 111392674

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