कुदरत का खेल सारा है ।
गहरी दुविधा मैं फ़शा जंहा सारा है ।
चुनोती आई हैं अपनो को खुद से बचाने की ।
अनोखी है ये लड़ाई, घर में बैठ के लङनेकी ।
सबक सायद सीखा रही हो ।
जीने के नए तरीके दिखा रही हो ।
मुसीबत आई है, इलाज भी आएगा ।
जिनपे तुम थूक रहे हो, वही कल भगवान कहलायेगा ।
साथ दो, एक हो, थाली की आवाज हो, या दिया का प्रकाश हो ।
सब चाहते है, सब का मंगल हो ।
व्यथा नही करनी, बीमारी आएगी और जाएगी ।
कुदरत ही फिर से जीना सिखाएगी ।
बस कुदरत का खेल सारा है ।
गहरी दुविधा मैं फ़शा जंहा सारा है ।
- संदीप तेरैया "धारागढ़ी"