इंसान नै गलतिया की,
उसको प्रकृति nay बार बार माफ़ किया|
इंसान को अब साजा का asaas हो गया है,
अगार नहि सुधरे,
आगे जो होगा वो कभि,
सोचा भई नहीं होगा |
samj जा इंसान सुधर जा इंसान,
mat खेल प्रकृति say,
नहि to क्या हो ग|,
wo kisikay liye भी,
Acha नही hoga!!!
Just a poem please be careful of future!!