रंग का मोल

सपने दिखा कर सपनो का क़त्ल कर दिया,
दुनिया का वास्ता देकर दुनिया ने ठग लिया!
फिर किसी महफ़िल के शौक गिना दो,
रंग का मोल लगा लो,
उजली चमड़ी की बोली लगा दो,
फिर कुतर-कुतर खाल के टुकड़े खा लो,
बचे-खुचे शरीर पर हँसकर एक और गुड़िया का ज़मीर डिगा दो!

तेरा भी कहाँ पाला पड़ गया?
...या तो इनमे शामिल हो जाना,
या फिर कोई सही मुहूर्त देखकर आना...
ये लोग लाश की अंगीठी पर रोटी सेंकते हैं....
और रूह की जगह रंग देखते हैं।

समाप्त!
#ज़हन

Hindi Poem by Mohit Trendster : 111374572

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now