कुछ दिनों से जो घर में बैठा हूँ,
जीवन की भागदौड़ से दूर॥
खुद को जो समय देना चालू किया है,
एक ही प्रश्न आता है मन में,
कहाँ था मैं अब तक?
जब से खुद से मिलना चालू किया है,
बस एक ही बात ये खुद से केहता हूँ,
कुछ दिनों से जो घर में बैठा हूँ॥
जाने कहाँ गुम हो गया है जीवन,
सारे मजे जो जिम्मेदारीयों तले छूट गए;
बैठा बैठा कुछ सोच कर बस अब मुस्कुरा देता हूँ,
कुछ दिनों से जो मैं बस घर में बैठा हूँ॥
- प्रथम शाह.