उड़ता परिंदा सोचे हैं...
क्यों थम गई जमीन कहां गई वो रंजिशें...
वो सही -गलत के नजराने ...
वो नहीं- है... अगर- मगर की फरमाइशें...
कहां गए वो लोग ...वो दौड़ ...वो मंजिलें ...वो ख्वाहिशें...
वो वक्त का पाबंद इंसान...
ये खुद की खुद पर लगी बंदिशें...
#सही