मन्नतों के धागे

कई जिंदगियों से गुजरी हूं मैं
हाँ उनमे से कुछ मेरे अपने भी हैं,
और मैं वो नहीं हूं जो मैं थी
मेरे मैं रह जाने के कुछ सपने भी हैं
अपने होने के सिद्धांत से लड़ती रही
ताकि मैं संघर्ष करती रहूं भटकूं नही
पलट कर हर बार पीछे देखती हूँ मैं
हाँ हर बार देखने के लिए मजबूर हूँ मैं
ताकि पहले एक बार ताकत जुटा सकूं
फिर आगे की ओर यात्रा पर बढ़ती हूं मैं
मील के पत्थर कम हो गए आगे
क्षितिज की ओर नई राह दिख रही है
सच्चे स्नेह से बांधे मन्नतों के धागे
मेहनत अब मेरी किस्मत लिख रही है
मेरे सच्चे स्नेह से बहुत कुछ तार जुड़े
हाँ अब भी कुछ धागे बिखरे हुए है
आगे बढ़ कर पलट कर जब हम मुड़े
देख नुकसान हृदय के टुकड़े हुए है
विकास की इस बढ़ती उन्मत्त हवा में
अनचाहे कुछेक बंधन टूट गए है
कड़वा कर देता हर खुशी की मिठास
प्यारे से कुछेक दोस्त भी छूट गए है
फिर भी मैं मुड़ती हूं, हाँ मैं मुड़ती हूं
अपनी कोशिशों से कुछ हद तक,
साथ जाने के लिए हाथ बढ़ाती हुई
पता नहीं भले रुकना पड़े कब तक
पर भरोसा है मुझे स्नेह से बंधे
मेरी मन्नतों के धागों, हर एक डोर पर
बाधाओं के उस पार लक्ष्य जब सधे
मेरे अपने, दोस्त भी मिले उस छोर पर
हर अंधेरी रात में एक संदेश भी मिलता है
जो समझ सकूं हर बात इतनी सक्षम नहीं
समझा है बस इतना की अपने में परिवर्तन करो,
अपनों में नहीं!

-सुषमा तिवारी

Hindi Poem by Sushma Tiwari : 111361685

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now