वृक्ष हूं
मांग रही हूं साफ़ हवा मैं
थोड़ी थोड़ी दोगे क्या
पेड़ लगाना भूल गए थे
बोलो अब करोगे क्या
कल तक जिसको कुछ ना समझा
आज मोल समझ में आया है
अपने अपने मतलब की करना
सबने आखिर यही सिखाया है
वृक्ष ना होंगे तुम जी जाओगे
कितनी सारी भ्रांति है
होश में आओ समय नहीं है
वृक्ष बचाओ क्रांति है
-सुषमा तिवारी