होली का रंग
रंगो के रंग में डुबजा
एक नए रंग में लिपटजा
मेघधनुष सा बिखर जा
अपने अस्तित्व में सिमट जा
अपने सपनो को रंगने दे
अपनों के साथ भीगने दे
फ़ासलों को मिटने दे
जीवन में रंग भरने दे
मेरा खुदा खेलता था
अपनी प्रेमिका के साथ ,
आज खुद खेलने दे
मुझे अपने वजूद साथ,
लहू का लाल रंग तो बहोत देखा
आज गुलाल का लाल देखने दे
ज़िंदगी रोज़ रंग बदलती हे
आज मुझे भी रंग बदलने दे
कविता के रचनाकार:
वेद चन्द्रकांतभाई पटेल
२४,गोकुल सोसाइटी ,
कड़ी ,गुजरात Mob.-9723989893