ऐ राजनेता

ऐ राजनेता,
तू मुझे जिन्दा लाश न समज
राजनीती का हथियार न समज
मेरी सहनशीलता की गहराई को समज
मेरी अन्दर भभगता लावा समज
तू मेरा कष्ट और मजबूरियों को समज

ऐ राजनेता,
ऐसा नहीं की में शस्त्र उठा नहीं सकता
और तू उतना पागल भी नहीं की
मेरा शास्त्र समज नहीं सकता

ऐ राजनेता,
तू मुझे ,
भविस्य की आस समज
देश की मौन आवाज़ समज
रामराज्य का ख्वाब समज
मेरे संविधान का विधान समज
मेरे परिवर्तन की पुकार समज


ऐ राजनेता,
तू अपने आपको दुष्ट समज
ऐ नासमज अब कुछ तो समज


कविता के रचनाकार: वेद चन्द्रकांतभाई पटेल २४,गोकुल सोसाइटी , कड़ी ,गुजरात Mob.-9723989893

English Thought by Ved Patel : 111354291

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