Girl: inner emotions

मन में एक पहेली थी, में सबके बीच अकेली थी।
जिंदा में थी लेकिन सांसे उसकी चलाई थी।
मेरी खुदके लिए भी खुदकी ना चली थी।।

अपना घर छोड़कर उसकी दुनिया बनी थी
खुदको छोड़कर पूरी दुनिया देखी थी।
आसमा था जमी थी बस खुदके पेरो की कमी थी
मेरी खुदके लिए भी खुदकी ना चली थी।।

आंखो में हसी और आयनो में रोयी थी
किसे बताओ यहां सबको मेरी भूख लगी थी।
मन में एक पहेली थी, जो कभी ना उलझी थी।
में खुदके लिए भी खुदकी ना चली थी।।

-sachin ahir

Hindi Poem by Sachin Ahir : 111343888

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