प्रयास

आज दिल फिर है बेकरार; क्युकी तु नहीं है आस पास

कब तक जीना होगा मुझे इस तरह; रहने लगी हूं मैं उदास

मौत के पहले, तुझे एकबार मिलने की है तीव्र आश

क्या कभी होगी यह ख्वाइश पूरी; क्या बुझेकी यह प्यास

काश मै होती एक परिंदा, उड़ते हुए आ जाती तेरे पास

कोयल बन के, तुझे मेरे दिल का हाल, सुनाने का करती प्रयास

अब तो जीने की नहीं है आस, फिर भी कर रही हूं प्रयास ।

Armin Dutia Motashaw

Hindi Poem by Armin Dutia Motashaw : 111329858

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