प्रयास
आज दिल फिर है बेकरार; क्युकी तु नहीं है आस पास
कब तक जीना होगा मुझे इस तरह; रहने लगी हूं मैं उदास
मौत के पहले, तुझे एकबार मिलने की है तीव्र आश
क्या कभी होगी यह ख्वाइश पूरी; क्या बुझेकी यह प्यास
काश मै होती एक परिंदा, उड़ते हुए आ जाती तेरे पास
कोयल बन के, तुझे मेरे दिल का हाल, सुनाने का करती प्रयास
अब तो जीने की नहीं है आस, फिर भी कर रही हूं प्रयास ।
Armin Dutia Motashaw