अब ये शहर कुछ अपना लगने लगा है।
नही अंजान मैं, मुझसे कहने लगा है।
अब गलियों से थोड़ी गुफ्तगू हुई है।
अब दोस्तों में महफ़िल सजने लगी है
अब ये शहर अपना लगने लगा है।

छोड़ आए थी मैं मेरी किस्सों को पीछे।
मेरे शहर को पीछे, मेरे दोस्तों को पीछे,
अब नए किस्से फिर से बनने लगे है,
फिर नए हाथ हाथों में आने लगे है,
अब ये शहर अपना लगने लगा है,

धन्यवाद
सोनिया चेतन क़ानूनगो

Hindi Poem by Sonia chetan kanoongo : 111329343

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