बचपन की सुबह भी क्या सुबह थी ...
माँ के गोद में आँखें खुलती थी

सूरज के कोई मायने न थे ...
बस माँ को ही सूरज समझते थे ...

माँ की हँसी सूरज की रोशनी बन ...
मेरे चेहरे को रोशन करती थी ...

बेटा कहकर मुझे पुचकारना....
दिन भर का जोश दे जाती थी ....

बचपन की सुबह भी क्या सुबह थी ....।

“शुभ प्रभात “

-A A राजपूत ‘अक्श’

Hindi Good Morning by A A rajput : 111327070

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