My New Poem...!!!


*कागजी टुकड़े पैसे में बहुत गर्मी होती है साहब*

*सबसे पहले ये रिश्ते जला कर राख करते हैं *

*चंद जूठे टुकड़ों में आजकल ईमान बिकते है *

*भूख की अग्नि में भी सिक्के ही दम तोड़ते हैं *

* मासूम हुस्न के बाज़ार सजते कली मसलते है *

*और तो और जिस्म-औ-कोख़ भी बिकती है *

* दौलतकी चकाचौंधमें रिश्ते-नाते भी पनपते हैं *

*औलाद भी वक़्त आने पर पुश्तैनी मिलक़त बटोरता है *

*मंत्री-औ-संत्री बिकते बिकता तो यहाँ लहूँ भी है *

*किरदार बिकते बिकती जवानी पैसों से झुकता हर कोई है*

सौदा तो यहाँ प्रभुसे भी चादर नारियल चढ़ावे का होता हैं *


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Hindi Poem by Rooh   The Spiritual Power : 111325648

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