कलम में रोशनाई की जगह पर खून भरता हूं।
खतों में अब भी अपने प्रेम का मजमूंन भरता हूं।।
कभी जब रोटियां मिलतीं नहीं हैं पेट भरने को।
बड़ा मजबूर होकर ताक में कानून भरता हूं।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
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