1 प्रेम
प्रेम हृदय में जब बसे, जग को करे निहाल ।
काम, वासना, क्रोध से, सब होते बेहाल ।।

2 ज्ञान
ज्ञान जगत में है बड़ा, उसका नहीं है छोर ।
जितना पाओगे उसे, बिखराओगे भोर ।।

3 पीड़ा
पीड़ा सबके माथ में, लिख देता भगवान ।
कर्मठ मानव जूझकर, पाता सदा निदान ।।

4 संताप
मानव खुद पैदा करे, रोग शोक संताप ।
सावधान यदि खुद रहे, दूर हटेंगे श्राप ।।

5 निर्मल
निर्मल मन की चाहना, होती है दरकार ।
दूषित मन से भागते, कौन करे सत्कार ।।

मनोज कुमार शुक्ल "मनोज "

Hindi Poem by Manoj kumar shukla : 111323721

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