सोचना क्या है उसने तो तिर मारा था दील मे...
लेकीन दर्द तब भी नहीं हुंआ जब दील के तुकडे हूये...
सिर्फ एक ही लब्ज बोला उसने की,
दील तुटने के बजाय दील ही निकालकर चल दिये...

Hindi Shayri by कार्तिक हजारे : 111321872

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now