उतने गम कहा थे जितने मेने लिखे थे
बात कहा किसीसे होती थी असल जीवनमे जितनी सोशल साईट में जमे थे
न जीवन की डोर किसी के हाथ सोपि थी और न मंजूर था सोपना फिर भी नजाने
क्यों बात अटकने की करते थे ?
फिसजुल सी बाते फिसजुल से उसूल न जाने कब जहन में बसा के वक्त जाया करने लगे थे
करियर के बारे में सोचते सोचते कोनसी पटरी पे बुलेट ट्रैन की रफ़्तार से दौड़ रहे थे समज आता तब तक काफी आगे निकल चुके थे .......
लौटना था वापिस मगर उलजानो में ऐसे तो उलझे पड़े थे तब तक मुँह पर ठंडा ठंडा ठंडा पानी आ गिरा और मां बोली उठजा नालायक नो बजे नो को है ...........हसते हुए हे भगवन थेंक यू ....ये तो सपना था हसते हसते किचन की और जा कर माको गले लगे थे फिर वो किताब हाथ में लेकर सफलता की कहानी खुद ही लिख रहे थे.
Writer_ni_kalame

Hindi Thought by Divya B Gajjar : 111312799

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