✍️अंतरराष्ट्रीय #चायदिवस 🍮 की शुरुआत 15 दिसंबर 2005 को नई दिल्ली से हुई। इसके बाद यह पूरे #विश्व में फैला। सुबह की चाय और मां के बगैर उठना थोड़ा अधूरा सा लगता है, धीरे धीरे आदत बनती है। चाय भी कई तरह से बनती है, ग्रीन टी तो स्वास्थ्य की दृष्टि से, आजकल बहुत पसंद की जाती है, लेकिन चाय के #शौकीन कहें या चाय के नशेड़ी उन्हें तो (लौंग अदरक की) चाय मतलब चाय वो भी #कुल्हड़ में मिल जाए तो कहना ही क्या। लगता है ब्रह्माण्ड में सिर्फ चाय ही परम आनंद की प्राप्ति करा सकती है। गुड़, अदरक वाली चाय, आहा! so yammiii जुकाम भी कोसों दूर। चाय पीने के भी अपने फायदे और नुकसान हैं। यह अनेक प्रकार से बनाई एवं पी जाती है। अगर सुबह की चाय अच्छी नहीं मिली, तो लगता है, पूरा दिन की शुरुआत ही सही नहीं है। शुरू शुरू में तो हम बच्चों को बहुत डांट पड़ती थी चाय पीने पर, कभी छुप कर तो कभी दादी से मनुहार कर या फिर सर्दी, खांसी जुकाम, बुखार में ही नसीब होती थी चाय। लेकिन अब तो आम हो चुकी है, इसे पारम्परिक, सर्व सुलभ पेय पदार्थ की श्रेणी में रखें, तो ज्यादा बेहतर होगा। सही भी है, चाय की निगाह में (ईश्वर की तरह सम दृष्टि, समभाव) सब बराबर क्या अमीर क्या गरीब। पुणे में चाय की एक अलग ही स्टाइल देखने को मिली, कुल्हड़ को गर्म तपा कर फिर उसमें चाय पीने का अपना अलग आनंद। चाय की सब अपनी अपनी ब्रांड, जगह के शौकीन होते हैं, जब खास आत्मीयता दिखानी हो या कोई विशेष बात करनी हो तो कहेंगे, मिलते हैं फलां चाय वाले प्वाइंट पर। कुछ तो खास बात है, इस मरजानी चाय में, कोई यूं ही मुरीद नहीं होता किसी का। चाय की थड़ी पर युवा हों या बूढ़े, दोस्त हों या सखी, या जिनको घर पर चाय पीने पर रोक है, गपशप करते दिख ही जाते हैं। चाय पर चर्चा तो आम बात है, कम खर्च में बात बन जाए, इससे अच्छा क्या हो सकता है।
#चाय बिगड़ी तो सवेरा बिगड़ा
#सब्जी बिगड़ी तो बिगड़ा दिन सारा
#अचार बिगड़े तो पूरा साल बिगड़ा
#पत्नी बिगड़ी तो गृहस्थ आश्रम बेकारा
#बच्चे बिगड़े तो बुढ़ापा सारा बिगड़ा
#समझ बिगड़ी तो सब कुछ बिगड़ा,
रहा ना कुछ पास तुम्हारा।।