शायद वो अंधेरा ही था जो सही रास्ता दिखा रहा था ।
उजाला तो रास्ते दिखाकर भी गुमराह कर रहा था ।
शायद वो बुरा वक्त ही मुझे अंदर से मज़बूत बना रहा था ।
सही वक्त तो मेरी कमजोरियो को छुपा रहा था ।
शायद गिरने का डर ही संभल के चलना सिखा रहा था ।
कीसीके सहारे चलना मैं बहादुरी समझ रहा था ।
शायद वो तन्हाई ही मुझसे बाते किया करती थी ।
लोगो की बातों का मतलब ही नही मिल पा रहा था ।
शायद में ही गलत था जो में खुदको ना समज पाया।
क्योकि,दुशरो के नजरिएमें , में अपनेआप को ढूंढ रहा था।