चेहरे पढ़ता. आंखे लिखता रहता हूँ।

मे भी केसी बातें लिखता रहता हूँ।

सारे जिस्म दरख्तों जैसे लगते हैं।

और बाहों को शाखें लिखता रहता हूँ।

तेरे हिज्र में और मुझे क्या करना है?

तेरे नाम किताबें लिखता रहता हूँ।

तेरी ज़ुल्फ़ के साये ध्यान में रहते हैं।

में सुबहो को शामें लिखता रहता हूँ।

अपने प्यार के फूल महकती राहों में।

लोगो को दीवारें लिखता रहता हूं।

तुझ से मिल कर सारे दुख दोहराऊंगा।

हिज्र की सारी बातें लिखता रहता हूँ।

सूखे फूल.किताबें. ज़ख्म जुदाई के।

तेरी सब सौगातें लिखता रहता हूँ।

उसकी भीगी पलकें हस्ती रहती हैं।

"मोहसिन" जब तक गज़ले लिखता रहता हूँ।

Hindi Shayri by Junaid Chaudhary : 111293721

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