हथेलियों में सूरज-

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज,

जो जला सके,

उन लोलुप वासना-रत

निगाहों को,

जो ताकती रहती है,

अबोध अहिल्याओं को.|

कर सके जो भस्म ,       

उन बलात्कारियों को,

जो छिपे हैं आज भी,

सबकी निगाहों से,

और गरज रहे हैं,

शेर बन कर.|

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज,

 जिसकी किरणें समा जाएँ,

कलम में हमारी ,

उधेड़ दे जो बखिए,

सिले हुए राज़ोंं के.|

हो जाएँ जिनसे रोशन,

उनके अँधेरे के गुनाह,

जो पाएं हैं, पनाह सत्ता की.

कर भस्म उनके आशियानों को,

कर दें उन्हें,

भटकने को मज़बूर | .

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज,

कर दें भस्म उन,

तथाकथित नेताओं को,

जो नेता कम पिछलग्गू

अधिक आते हैं नज़र,

जो छिपाएं हैं सफेदी में,

अपने कर्मों की कालिख,

और ढा रहे हैं जनता पर कहर.|

नोटों के नशे में धुत्त,

जिनकी कलम

हस्ताक्षर करने के लिए

तुलती है करोड़ों में.

जिनके कालीन के तले,

बिछे होते हैं,

अरबों-खरबों रुपए.

भविष्य को कर अपने

सुरक्षित,

सो रहे हैं जो बेखबर|

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज,

कर दें भस्म,
तथाकथित नेताओं को,

जो नेता कम पिछलग्गू

अधिक आते हैं नज़र,

जो छिपाएं हैं सफेदी में,

अपने कर्मों की कालिख,

और ढा रहे हैं जनता पर कहर.|

नोटों के नशे में धुत्त,

जिनकी कलम

हस्ताक्षर करने के लिए

तुलती है करोड़ों में.

जिनके कालीन के तले,

बिछे होते हैं,

अरबों-खरबों रुपए.

भविष्य को कर अपने

सुरक्षित,

सो रहे हैं जो बेखबर|

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज,

कर दें भस्म,

उन देशद्रोहियों को,

जो देश में आज भी,

घूम रहे हैं ज़िंदा,

कर रहे आतंकित,

जनता को पहन मुखौटा.|

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज,

जो बनकर आए

एक आशा की किरण

उन हृदयों में

जो आज बुझ चुके हैं,

खो बैठे हैं अपनी आस्था

सत्ता के प्रति  

जो लाए एक स्वर्णिम प्रभात,

उन चंद इंसानों के लिए,

जो आज भी सत्य के साए में  

ईमानदारी और विश्वास को लपेटे

गठरी बने बैठे हैं,

अपने घरौंदे में.| 

नहीं खौफ़ रखना तनिक

अपनी हथेलियाँ जलने का,

यह जलन बहुत कम होगी

‘जीते जी जलने’ से तो

राहत ही मिलेगी तब,

कर सकेंगे जब 

कुछ तो दिशाहीन,

इस भटकते समाज को

रोशनी से रु-बरू करवाकर.|

आओ उगा लें ,

हथेलियों में अपनी,

एक नन्हा सूरज|

---©--मंजु महिमा

Hindi Thought by Manju Mahima : 111267094
Manju Mahima 3 years ago

आपका जवाब नहीं.. आपकी समीक्षा को सलाम 🙋

Manju Mahima 4 years ago

धन्यवाद🙏💕

Manju Mahima 4 years ago

😃😃 मेरे लिए तो आपके विचार बहुत महत्व रखते हैं दीदी.. आपके शब्द मेरे लेखन को एक नई ऊर्जा देते हैं. धन्यवाद शब्द आपकी उदारता के सम्मुख बहुत छोटा है. हार्दिक आभार.. 🙏🙏🙏

मधु सोसि गुप्ता 4 years ago

आपकी समस्त कविताओं में विलक्षण दरिषटि है । असाधारण सोच है । जहॉ साधारण सोच जा नहीं पाता आप वहॉ पहुँच जाती है और किस प्रकार छोटी छोटी दिखने वाली वस्तुएँ चाहे वे प्रकृति की हो या पक्षी की ! आप की नज़र उन्हें एक नायब मुक़ाम पर पहुँचा की है । मैं आपका नाम सर्वश्रेष्ठ कवियों में दर्ज करती हूँ । ये बात और है कि मेरी बिसात ही क्या है ?

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