दर्द कागज पर मेरा बिकता रहा,
मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा
.
छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की,
मैं सितारों के बीच चाँद की तरह छिपता रहा
.
अकड होती तो कब का टूट गया होता,
मैं सबके आगे झुकता रहा
.
बदले यहाँ लोगों ने रंग अपने-अपने ढंग से,
मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा
.
#Unknown

Hindi Shayri by Harshil Patel : 111251112

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