वो कृश काया और बरगद सी छाया ,
खोकर उसको मैंने कुछ भी ना पाया,
वो सदा रहता संग मेरे, जो इक साया,
गुम हो गया इक सुबह,फिर ना आया।

वो संभालता मेरी बचपन की गुड़िया,
बनाता वो मेरे सब खेलों की पुड़िया,
साथ साथ मेरे उड़ाता इक चिड़िया,
वो था तो बचपन था कितना बढ़िया।

वो मेरे मेलों ठेलों का पक्का साथी ,
मिलकर देखा हमने सर्कस का हाथी,
न मेरा इक बेटा ,ना ही उसका नाती,
सब खेल खिलौनों के हम दो ही साथी ।

वो बनाता रोज दो प्याली कड़क चाय,
मांगता फिर वो चाय पर मेरी नेक राय,
क्या कहती कि ये अमृत का है प्याला ,
पितृस्नेह जिसमें तुमने है पूरा डाला ।

वो जिसपर जीवन का आधार बनाया ,
उसको मैंने खुद ही उस पार पहुंचाया,
दूर हुआ मुझसे मेरा वो इक सरमाया
एक बार भी उसने मुझको नहीं बुलाया।

गोद में जिसकी झूला मेरा बचपन ,
भूला नहीं मुझे वो इक पल, इक क्षण,
कहां गया वो तोड़ के सब ये बंधन,
सुनता है क्या वो,जो पुकारे मेरा मन ।

Hindi Poem by Amita Joshi : 111248874
Deepa Chauhan 5 years ago

Bahooooot sunder...really touching

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