एक जमाना हो गया खुद को देखे हुए...खुद से आँखे मिलाये हुए... खुद से मिलने का ज़रिया बना वो आईना आज खुद धूल मिट्टी के साथ भी अकेला पड़ा है...जो कभी टूटने से बचाता था आज टूटने की कगार पर है...उन आखरी पलो में भी मेरा पता पूछ रहा है...बिना नैना मिलाये हम ने भी जता दिया कि "हां... यहीं हूं मैं"


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Gujarati Poem by Trilokdan Gadhavi : 111246051

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