तेज हवा मेरे बालों को उड़ाकर ,
मेरी आँखें बंद नहीं कर पाती,
सर्द हवा से मेरे रोयें खड़े नहीं होते
न मेरी हथेलियाँ मेरी कोहनियों
के पास जाकर मुझे अपने में समेटती हैं
ठंढ से बचाने के लिए
झमाझम बारिश में खड़ी रहती हूँ ,
खुले आकाश के तले, बाँहे पसारे
पर कोई बादल मुझे भिगो नहीं पाता
शायद, मेरे भीतर का ज़िन्दापन
मुझे छोड़कर,
तुम्हें ढूँढने निकल गया है
#कृष्ण

Hindi Poem by Meenakshi Dikshit : 111220956

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