शतरंज के खेल में हम वज़ीर बचाते-बचाते राजा खो बैठे, खेल कब पलट गया पता ही नहीं चला।
अब हमारे पास राजा न था, था तो सिर्फ़ एक तज़ुर्बा जो जिंदगी भर साथ रहेगा,
जो शायद इकलौता पुरुस्कार था जो हमे उस खेल में मिला था।

Hindi Thought by Shashikant Kumar : 111208974

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