हैं लफ्ज़ कम,
हे कम नही तन्हाई मेरी।
हे ज़िन्दगी उलझी हुई तेरे सवालों में,
पर मिलता नही सुकून क्यूं, मेरे जवाबो में।
मै डूबता साहिल कोई,
तूं खिल रहा सा चांद है।
ज़िन्दगी है खो रही
और मिट रही पहचान है।
मै आश लेकर जी रहा कि,
तूं मुझे पहचान ले;
मेरी मिट चली पहचान को,
तू एक नई पहचान दे।
खो गयी है रोशनी,
और है अंधेरा सामने।
हूँ अकेला मै यहाँ, तू हाँथ मेरा थाम ले।
खो गई मुस्कान है और
हो गयी है आँख नम,
कैसे कहूँ हैं कितने गम!
हैं लफ्ज़ कम,
हैं लफ्ज़ कम,
हैं लफ्ज़ कम।