माँ की याद दिलाती बेटी
यूँ मुझको समझाती बेटी

अनजाने लोगों के घर को
हंस हंस कर अपनाती बेटी

फूलों को शरमा देती है।
जब भी है मुस्काती बेटी

अपने तो बस ज़ख्म लगते
मरहम सिर्फ लगाती बेटी

कोई झुर्म नहीं है लेकिन
कोख़ में मारी जाती बेटी

फूलों सी बाबुल के अंगना
साजन घर कुम्हलाती बेटी

मजदूरी भी कर लेती है।
बापका क़र्ज़ चुकाती बेटी

अपने सब हो जब बेगाने
किस से आस लगाती बेटी

सुने घर को सुने मन को
खुशियो से भर जाती बेटी।

करना कद्र कभी तो उसकी
किस्मत से मिल पाती बेटी

उसके हक़ का रिज़्क़ है इसमें
कब औरो का खाती बेटी

महबूब इतनी कुर्बानी कर
दुनिया से क्या पाती बेटी

महेबुब सोनालिया

#kavyotsav -2
Today is #Birthday of my daughter
seeking for you blessings

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