#काव्योत्सव

जीवन की आपाधापी में........

जीवन की आपाधापी में
जीवन के ताने बाने में ,
मैं प्यार निभाती ही रही
प्यार दिखा न पाई !
दायित्वों के तले
कर्म करती ही रही ,
मुस्कान बिखेरती ही रही
मुस्करा न सकी !
तुम को सुलाने में
ख़ुद मैं कभी सो न पाई,
तुम्हे लिख़ना सिखाने में
ख़ुद लिखना भूल गई!
अब इस सान्ध्यकाल जो देख़ा ,
कुछ भी न मैंने ख़ोया है !
देख़ मेरे चेहरे की हल्की शिकन ,
तुम भूल जाते हो मुस्कराना
मेरे हल्की सी लड़खड़ाहट पर ,
दौड़ आते हो थामने मुझ को
मेरे आवाज़ की उदासी ,
कैसे महसूस कर जाते हो
कैसे कहूँ मैंने कुछ ख़ोया ,
सारा जग तुमने तो दे डाला
ये सुक़ून भरी नींद ,
उन जागी रातों पर वारी हैं
मेरे चाँद -सूरज ,
मेरी दुनिया के सितारों
तुम्हारी मीठी रौशनी ,
सच यही तो मेरे मन-आंगन
में महकती-खिलखिलाती चमक है ... निवेदिता

Hindi Poem by Nivedita Srivastava : 111170639

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