#kavyotsav2
‘ बचपन खो रही थी ‘
जा रहा था घर, शाम बाह़े खोल रही थी,
दिन ढल रहा था, रात हो रही थी।
एक मोड़ आया रस्ते मे, BUS अपनी गति खो रही थी,
खिड़की के बाहर देखा तो अजीब सी हरकत हो रही थी।
देखा जब बाहर तो आँखे नम हो रही थी,
फूटपाथ की बाहों मे छोटी सी लड़की सो रही थी।
मासूम से चेहरे पे धुल इधर-उधर हो रही थी,
ठण्ड की लहरो मे कच्ची सी नींद खो रही थी।
डर न था उस परी को कुछ हो जाने का,
कुदरत के साये मे मीठे सपने बो रही थी।
दुनिया इस नन्ही परी को ठुकरा रही थी,
वो परी फिर भी नींद मे मुस्कुरा रही थी।
इश्वर की बनाई दुनिया मे इंसानियत सो रही थी,
वो मासूम परी फूटपाथ पे अपना बचपन खो रही थी।
- Chirag Koshti