#काव्योत्सव .2
।। कविता ।।
#प्रेम
जो खास थे वो आज बहुत आम हो गए ।
गली ,शहर , मोहल्ले में बदनाम हो गए ।।
शोहरतें छूने को यह बेताब आसमाँ ,
खाक में बिखर कर बेनाम हो गए ।
पत्थर समझ के जिसको मुँह फेर लिया था ,
आज उस नगीने के दाम इनाम हो गए ।
खोटा समझ के तुम क्यों मायूस हो गए ?
आम तो आम ,गुठलियों के भी दाम हो गए ।
मंजिलें -- तलाश में तुम तो निकल पड़े ,
खुदा की बंदगी में ‘इमाम ‘हो गए ।
चाहतों को भी चाहा है कुछ इस कदर,
इश्क में तेरे हम तो गुल्फाम हो गए ।
इस गुमनाम दास्तां को कुछ नाम दो यारो ,
चाहतो में तेरी “प्रकाश” सुबह -- शाम हो गए ।
नमिता "प्रकाश"
-- Namita Gupta
मातृभारती के माध्यम से साझा किया.. https://www.matrubharti.com/bites/111169936