#काव्योत्सव२
नारी

सौम्य, कोमल सहृदय है नारी, 
देवतुल्य पूजनीय. है नारी, 
कुटुंब की गरिमा है नारी, 
पुरुष प्रधान समाज में है बेचारी |

काली, दुर्गा, चंडी का रूप है नारी, 
खोखले समाज की रीढ़ है नारी, 
एक नारी है सब पर भारी ,
फिर भी दबायी जाती है नारी |

अत्यंत दयनीय स्थिति में है नारी, 
जन्म देने वाली है नारी ,
पालकर बड़ा करने वाली है नारी, 
फिर भी जन्म से वंचित है नारी |

बचपन से ही सिसकती है नारी, 
हसने, खेलने, घूमने पर है पाबन्दी भरी ,
छीन ली जाती है आज़ादी सारी, 
छोटी सोच का शिकार है नारी |

शादी के लिए लगती है बोली, 
अपनी कीमत खुद ही चुकाती है नारी, 
बेचकर वह अपने अस्तित्व को ,
जीवित ही चिता जला लेती है नारी |

बलिदान की. मूर्ति है नारी, 
सहनशक्ति की मिसाल है नारी,
हज़ारो जुल्म. सहकर भी ,
हसती और हसाती है नारी |

बदलाव की चिंगारी है नारी, 
परिवर्तन का स्तम्भ है नारी, 
ठान ले अगर वह ,
कुछ भी कर सकती है नारी |

                                                    -पूर्णिमा राज

Hindi Poem by पूर्णिमा राज : 111169392

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