ऊसर भारतीय आत्माएं


रात्रि की इस नीरवता में

क्यूँ चीख रही कोयल तुम

क्यूँ भंग कर रही,निस्तब्ध निशा को

अपने अंतर्मन की सुन


सुनी थी,तेरी यही आवाज़

बहुत पहले

'एक भारतीय आत्मा' ने

और पहुंचा दिया था,तेरा सन्देश

जन जन तक

भरने को उनमे नयी उमंग,नया जोश.


पर आज किसे होश???


क्या भर सकेगी,कोई उत्साह तेरी वाणी ?

खोखले ठहाके लगाते, मदालस कापुरुषों में

शतरंज की गोट बिठाते,स्वार्थलिप्त,राजनीतिज्ञ में

भूखे बच्चों को थपकी दे,सुलाती माँ में

माँ को दम तोड़ती देख विवश बेटे में

दहेज़ देने की चिंता से पीड़ित पिता

अथवा ना लाने की सजा भोगती पुत्री में


मौन हो जा कोकिल

मत कर व्यर्थ अपनी शक्ति,नष्ट

नहीं बो सकती, तू क्रांति का कोई बीज

ऊसर हो गयी है,'सारी भारतीय आत्मा' आज.

Hindi Poem by Rashmi Ravija : 111169277
Paaru Sayyedv 5 years ago

bhut khub diyer ferinds bwetifool dipi

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