✍️आजकल पारिवारिक #रिश्ते हों या हमारा जो आज का #चुनावी माहौल है, मर्यादा ने सारी हदें पार कर दी हैं, उसमें 1955 में प्रकाशित धर्मवीर भारती के बहु प्रशंसित काव्य नाटक #अंधायुग की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं, ________
#टुकड़े टुकड़े हो बिखर चुकी #मर्यादा
उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है।
#पाण्डव ने कुछ कम, #कौरव ने कुछ ज्यादा
यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है।
यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय
दोनों पक्षों को #खोना ही खोना है।
अंधो से शोभित था युग का सिंहासन
दोनों ही पक्षों में #विवेक ही हारा
दोनों ही पक्षों में जीता #अंधापन
अधिकारों का अंधापन जीत गया
#जो कुछ #सुंदर था, #शुभ था, #कोमलतम था
वह #हार गया......वह हार गया........!

English Blog by Manu Vashistha : 111169111

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