#kavyotsav_2
#मन -का-अभिलाषा
चाहता हूँ कभी उड़ना आसमा पे
पंक्षियों की तरह बाहें फैला के
चाहता हूँ कभी समुद्र के लहरों को
उतार लू मन के कैमरों में
चाहता हूँ करूँ बातें प्रेम का
प्रेमिका संग उन चांदनी रातों में
चाहता हूँ कभी बन जाऊं बच्चा
खेलूँ सारे खेल बचंपन के
चाहत हूँ कभी बनकर बुजुर्ग
बयां करू उनके अनुभव और दर्द
चाहता हूँ कभी बन जाऊं नदी
और मै प्रकृति का सैर करता चलू
चाहता हूँ कभी बनकर वृक्ष
फल और छाया दू सबको फ्री
चाहता हूँ कभी बन जाऊं उनकी आंख़े
जो देख न पाये है दुनिया को कभी
है ऐसी ही कई चाहते
जो है छिपी स्मृतियों के पीछे
हटा उन स्मृतियों के घने धुंध
उसमे लगा मन रूपी पंख
जीवन के हर गलियों में
बनकर एक अनुभवी शिक्षक सा
अवलोकन करना चाहता हूँ
शायद मैं यही सब चाहता हूँ।।!!

Hindi Poem by Dileep Kushwaha : 111169058

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now