#काव्योत्सव2 #kavyotsav2 #poetry #कविता

**हाथ भर की दूरी**


कहाँ गई हूँ मैं
कहीं भी तो नहीं
यहीं हूँ
तुम्हारे पास...

ज़रा आंखे मूंद कर देखो
हाथ भर की ही दूरी होगी

हवा चल रही है क्या
सुनो कुछ कह रही होगी
जो मैंने कहा तुमसे
दिल ही दिल में
सुन लिया था उसने...

न 
मत ठीक करना ये बाल
जो माथे पर गिराए हैं
हवा ने
मेरे ही तो कहने से

हाँ,अभी सहलाया था मैंने ही
वो  तुम्हारी उंगली पर बना 
हमारे प्यार की निशानी के
छल्ले का निशान 
हौले हौले
हवा बन के ही तो


क्या...
होंठो पर महसूस हुई है
कुछ हरारत तुमको

धत्त...
वो मैं नहीं
गुज़रती हवा ने छुआ होगा तुम्हें
मैं तो हाथ भर की दूरी पर हूँ न...

बस फैला कर देखो बाहें 
मैं दौड़ कर आ जाऊंगी
एक एहसास ही तो हूँ
तुम्हारे भीतर समा जाऊंगी 

क्योंकि
वहीं तो हूँ मैं
तुम्हारे पास
हाथ भर की दूरी पर...

#अंजलि सिफ़र

Hindi Poem by Anjali Cipher : 111169020

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