#काव्योत्सव
हो गयी हूँ चुप पर गीत अभी बाकी है
थक गयी हूँ बहुत सफर अभी बाकी है
तीर तलवार के वार बहुत किये तुमने
बेजुबानी की चुप्पी अनदेखा किये तुमने
उठ सकती है झुकी ये निगाहें मेरी
जिंदगी की है अब ये पतवार मेरी
शब्दों को डुबो तो दूँ मंझदार में
बेख्याली के इस दीन ओ दीदार में
चंद साँसों की कर्जदारी अभी बाकी है
खामोश शब्दों का उधार अभी बाकी है .... निवेदिता
#काव्योत्सव