#काव्योत्सव #KAVYOTSAV -2 #प्रेम

सुनो
सुन रहे हो न
ये तुम में मेरा अंतहीन सफ़र
क्या कभी हो पायेगा ख़त्म

पता नहीं कब से हुई शुरुआत
और कब होगा ख़त्म
माथे के बिंदी से.......
सारे उतार चढ़ाव को पार करता
दुनिया गोल है, को सार्थक करता हुआ

तुमने देखा है?
विभिन्न घूमते ग्रहों का चित्र
चमकते चारो और वलयाकार में
सर्रर से घूमते होते हैं
ग्रह - उपग्रह ......!
अपने अपने आकाश गंगा में
वैसे ही वजूद मेरा
चिपका, पर हर समय का साथ बना हुआ !

जिस्मानी करीबी,
एक मर्द जात- स्वभाव
पर प्यार-नेह को अपने में समेटे
चंदा सी चमकती तुम
या ऐसे कहो भोर की तारा !
प्रकाश भी, पर आकर्षण के साथ
अलौकिक हो न !

अजब गजब खगोलीय पिंडों सा रिश्ता है न
सुनो हम नहीं मरेंगे
ऐसे ही बस चक्कर लगायेंगे
तुम भी बस चमकते रहना !

सुन भी लिया करो
मेरी लोड-स्टार !

~मुकेश~

Hindi Poem by Mukesh Kumar Sinha : 111164667

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