#काव्योत्सव2
एक पल
यह है
एक पल
वह था
अभी जो छुआ
वो लम्हा भी "यही है "
एक लम्हा जो तब" चुराया "
वो भी वही था
कुछ लम्हों से मिले
शाम के ढलते सायों में
कुछ को पाया
सुबह के सुबकते उजालों में
बंद मुट्ठी खोल के देखा
तो पाया
ज़िन्दगी मुस्करा रही थी हथेली पर !!