# काव्योत्सव 2
(प्रेम/अध्यात्म)
मेरा मकसद तुझे पाना तो नहीं ओ आकाश !
मेरा मकसद
तुझे पाना तो नहीं ओ आकाश !
मैं जानती हूँ तुझे पाने के लिए
छोड़नी पड़ेगी धरती
छोड़नी पड़ेगी देह भी
मैं जानती हूँ
कब छूटती है देह
जब ले जाते हैं
कंधो पर देह
और घुल जाती है देह
पंच-तत्वों में
मैं जानती हूँ
कब घुलती है देह
जब छूट जाता है
मोह धरती का
और आत्मा विलग होती है
देह से
मैं जानती हूँ
कब होती है आत्मा
विलग देह से
जब तड़प हो आकाश से मिलने की
और तृष्णा जागे
परमात्मा से मिलन की
कब होगी वो तड़प तुमसे मिलने की ओ आकाश !
मेरा मकसद तुझे पाना तो नहीं ओ आकाश !