#काव्योत्सव२ #भावप्रधान

-हमेसा याद रखना-

हार उसी को मार जाती है,
परहेज जीसको मुम्कीन से होती है!
जीत तो तड़प की गुलाम बनके आती है,
छाव में बैठे कोनसी खेती धान पाती है|

सम्भाल के चल या चलते सम्भलना सीख,
आरंभ को अन्त या उसी अन्त को नया आरंभ समजना सीख,
अरमान तो अधुरे रेह गये वही अधुरे से अनूठे अरमान जोड़ना सीख,
आँखे खोल गये जो सपने उससे बेहतर के लीये निन्द छोड़ना सीख|

जुगलबन्धि कर्मा और धर्मा मे रख,
अकलमंदी अपनी के साथ सलाह दुसरो की भी चख,
करके बता कर्म, बेजूबान करदे बेमतलब का मुख,
आयना अपना ओर दर्पण दुसरो के परख|

करके करम को कभी मत कोसना,
कीस्मत के भरम से कभी मत रूठना,
बातो के कइ बवंडर से होगा गुजरना,
बस यही सारी बाते हमेसा याद रखना|

- मीत खोडीयार

English Poem by Meet Khodiyar : 111163507

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